क्रिकेट एक ऐसा खेल है, जो जीवन बदलने की ताकत रखता है। दुनियाभर में कई ऐसे फेमस क्रिकेट खिलाड़ी हुए हैं, जिन्होंने फर्श से अर्श तक का सफर तय किया है। रास्ते में उन्हें ढेरों चुनौतियां मिली हैं, लेकिन वे कहीं पर नहीं रुके। आज उनकी कहानियां अनगिनत लोगों को प्रेरणा देती हैं। उन्होंने अपनी सफलता के जरिए ना सिर्फ खुद का जीवन बदला बल्कि दूसरों पर भी अपनी गहरी छाप छोड़ी है। उन्होंने दिखा दिया कि अगर आप कड़ी मेहनत करके अपने सपने को खुली आंखों से जीते हैं तो वह सच होकर ही रहेगा। आइए उन क्रिकेट खिलाड़ियों के बारे में जानते हैं, जिन्होंने गरीबी में जीवन गुजारा लेकिन अपनी लगन से क्रिकेट में एक बड़ा मुकाम हासिल किया।
डेविड वॉर्नर एक स्टोर में करते थे नौकरी
ऑस्ट्रेलिया के सलामी बल्लेबाज डेविड वॉर्नर का फेमस क्रिकेटर बनने तक का सफर संघर्षों और बाधाओं से भरा रहा। उन्होंने जिन चुनौतियों का सामना किया, उनमें से एक है पैसों की तंगी। राष्ट्रीय क्रिकेट टीम में आने से पहले वॉर्नर को अपना गुज़ारा करने के लिए एक स्टोर में काम करना पड़ा था। दरअसल, डेविड एक साधारण परिवार में जन्मे थे, जहां पैसों की तंगी की वजह से उनके माता-पिता दोनों को काम करना पड़ता था। वॉर्नर क्रिकेटर बनना चाहते थे पर उनके पास अपने जुनून को आगे बढ़ाने के साधन नहीं थे। वह टेनिस बॉल से क्रिकेट खेलते थे। उनके पास एक साधारण बैट था, जिसे उनकी मां ने 5 डॉलर में खरीदकर दिया था। जब उन्होंने क्रिकेट पर ध्यान केंद्रित करने के लिए 17 साल की उम्र में हाई स्कूल छोड़ा तो वॉर्नर को खुद का गुजारा करने के लिए नौकरी ढूंढनी पड़ी। उन्होंने सिडनी में एक स्पोर्ट्स स्टोर में काम किया, जहां खेल उपकरण और परिधान बेचे जाते थे। उन्हें क्रिकेट की ट्रेनिंग के लिए जॉब करनी पड़ी, ताकि फीस भरने के लिए पैसा कमा सकें। अपनी नौकरी और ट्रेनिंग के बावजूद वॉर्नर ने पेशेवर क्रिकेटर बनने के अपने सपने को कभी नहीं छोड़ा।
टांगे वाले ने खिलाया था शोएब अख्तर को खाना
पाकिस्तान के पूर्व तेज गेंदबाज शोएब अख्तर का क्रिकेट की ऊंचाइयों तक पहुंचने का सफर आसान नहीं रहा। वह रावलपिंडी के छोटे से शहर में चार भाई-बहनों के साथ पले-बढ़े थे। वह सबसे छोटे थे। उनके पिता चौकीदार थे, जबकि मां गृहिणी। वह दोस्तों के साथ फुटबॉल और क्रिकेट खेला करते थे, जहां एक कोच ने उनकी क्षमताओं को देखा और उन्हें प्रशिक्षण देने को कहा। उस दौरान उनका परिवार कई परेशानियों से गुजर रहा था। घरवाले क्रिकेट ट्रेनिंग की फीस देने में असमर्थ थे। इस पर कोच ने उन्हें फ्री में ट्रेनिंग देने को कहा। उन्होंने अपनी किताब में बताया कि जहीर अब्बास के युवा क्रिकेटरों के चयन को लेकर ट्रायल चल रहे थे। पैसे ना होने की वजह से मैं दोस्त के साथ बस की छत पर बैठकर लाहौर गया था। वहां पहुंचने के बाद हमारे पास पैसे नहीं बचे थे कि कुछ खाना खा सकें या किसी होटल में रात गुजार सकें। तब फरिश्ते के रूप में एक टांगे वाला मिला, जिसने अपनी मजदूरी में से हमें एक वक्त का खाना खिलाया और फुटपाथ पर रात गुजारने के लिए जगह दी। अगले दिन स्टेडियम तक छोड़कर भी आया, जहां ट्रायल चल रहे थे।
मोहम्मद यूसुफ दर्जी बने और रिक्शा भी चलाया
दर्जी से क्रिकेटर बनने तक का पाकिस्तान के पूर्व बल्लेबाज मोहम्मद युसूफ का सफर बहुत दिलचस्प और प्रेरणादायक है। उनका जन्म 1974 में लाहौर में एक क्रिश्चियन परिवार में हुआ था। उनका नाम यूसुफ योहाना था। उनके पिता रेलवे में नौकरी करते थे लेकिन वक्त पलटा और उन्हें घर चलाने के लिए दर्जी तक का काम करना पड़ा। एक वक्त ऐसा भी आया, जब उन्हें पढ़ाई जारी रखने के लिए रिक्शा चलाना पड़ा था। उन्हें क्रिकेट का बहुत शौक था। वह स्थानीय टीमों के साथ क्रिकेट खेले और वहीं से चयनकर्ताओं की नजर उन पर पड़ी। उन्होंने 1998 में पाकिस्तान की राष्ट्रीय टीम के लिए पदार्पण किया और देश के सबसे सफल बल्लेबाजों में से एक बन गए। वह पाकिस्तान के 5वें नॉन मुस्लिम खिलाड़ी थे, जिन्होंने पाकिस्तान टीम के साथ डेब्यू किया था। उन्होंने सईद अनवर की दावत में इस्लाम कुबूल किया। मोहम्मद यूसुफ ने टेस्ट में 9,000 और वनडे में 7,000 से अधिक रन बनाए हैं।
बैट खरीदने तक के शिवनारायण चंद्रपॉल के पास नहीं थे पैसे
गुयाना में एक गरीब परिवार में जन्मे शिवनारायण चंद्रपॉल को क्रिकेट के प्रति अपने जुनून को आगे बढ़ाने के लिए कई बाधाओं को पार करना पड़ा था। परिवार के पास उन्हें क्रिकेट की ट्रेनिंग करवाने और जरूरी चीजें दिलवाने तक के पैसे नहीं थे। ऐसे में उन्हें प्रैक्टिस के लिए अस्थायी बैट और बॉल से ही काम चलाना पड़ा। हालांकि, खेल के लिए चंद्रपॉल का प्यार बहुत गहरा था। वह कहीं भी अभ्यास में मशगूल हो जाते और कोच के मार्गदर्शन में खुद को संवारते रहते। उन्होंने स्थानीय क्रिकेट टूर्नामेंटों का काफी लाभ उठाया। वहां उन्हें बैटिंग किट और खेलने के मौके मिलते रहे, जिसके जरिए वो अपनी क्रिकेट को बेहतर करते रहे। इस तरह उन्होंने 1994 में वेस्टइंडीज क्रिकेट टीम में पदार्पण किया। वह टीम के सबसे सफल बल्लेबाज थे। वह अपनी अपरंपरागत बल्लेबाजी की शैली और दबाव में खेलने की क्षमता के लिए आज भी पहचान जाते हैं।
मस्जिद के एक कमरे में रहता था इरफान पठान का पूरा परिवार
मस्जिद के कमरे में बचपन गुजारने वाले भारतीय टीम के हरफनमौला खिलाड़ी इरफान पठान आज कई आलिशान घरों के मालिक हैं। स्विंग गेंदबाज और बल्लेबाज इरफान पठान एक ऐसे भारतीय खिलाड़ी के रूप में जाने जाते हैं, जिन्होंनें फर्श से अर्श तक का सफर तय किया है। उनका जन्म बड़ौदा के एक गरीब परिवार में हुआ था। उनके पिता मस्जिद में मौलवी थे। उनके पास खुद का घर नहीं था। वह मस्जिद में रहा करते थे। इरफान ने अपनी स्कूलिंग बड़ौदा से ही पूरी की। उन्होंने पढ़ाई के साथ क्रिकेट खेलना भी शुरू किया। 13 साल की उम्र से क्रिकेट की शुरुआत करने के बाद उन्होंने अंडर-14, 15, 16 और अंडर-19 में बेहतरीन प्रदर्शन किया। इस तरह वह धीरे-धीरे सफलता की सीढ़ियां चढ़ते गए।
रिक्शा चलाने वाले पिता ने ठान ली सिराज को क्रिकेटर बनाने की
भारतीय टीम के स्टार तेज गेंदबाज बन चुके मोहम्मद सिराज की गरीबी से उठकर एक फेमस क्रिकेटर बनने तक की कहानी काफी मशहूर है। दरअसल, वह एक बहुत ही गरीब परिवार से ताल्लुक रखते थे। उनके पिता रिक्शा चलाते थे और उन्होंने बेटे को क्रिकेटर बनाने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था। मोहम्मद सिराज ने भी पिता के समर्पण को देखकर बहुत मेहनत की और अपनी जगह भारतीय टीम में बनाई।
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