इस बात में कोई दो राय नहीं कि महेंद्र सिंह धोनी की गिनती इस वक्त दुनिया के बेहतरीन विकेटकीपर में होती है। विकेटकीपिंग में अब तक कई बड़े रिकॉर्ड अपने नाम कर चुके धोनी का 2019 विश्व कप लगभग आखरी विश्न कप होगा। 37 साल के धोनी इस वक्त टीम के सबसे सीनियर खिलाड़ी हैं। ज्यादातर दिग्गजों का मानना है कि धोनी का विश्व कप टीम में होना बहुत जरूरी है। वहीं लंबे समय से टीम से बाहर चल रहे सुरेश रैना ने तो यहां तक कह दिया है कि अगर कप्तान विराट की अगुवाई में भारतीय टीम 2019 का विश्व कप जीत जाती है तो उसमें धोनी का बहुत ही बड़ा रोल होगा।

बात चाहे विकेटकीपिंग की हो या युवा खिलाड़ियों के साथ-साथ कप्तान विराट कोहली को मैदान पर सलाह देने की हो धोनी की काबिलियत पर सवाल उठाने का प्रश्न ही नहीं उठता है, लेकिन बात जहां बल्लेबाजी की आती है तो धोनी में वो पुरानी वाली झलक देखने को नहीं मिलती है,जिसके जरिए उन्हें विश्व क्रिकेट में एक खास पहचान मिली। कई बार हमने देखा है कि धोनी की धीमी बल्लेबाजी टीम की हार का कारण बनी। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ पहले टी-20 में भी धोनी की धीमी बल्लेबाजी कहीं ना कहीं टीम की हार की वजह रही थी। भारतीय टीम को कुछ ही महीनों बाद विश्व कप जैसे बड़े टूर्नामेंट में शिरकत करनी है। ऐसे में यह सवाल उलना लाजमी है कि क्या महेंद्र सिंह धोनी की धीमी बल्लेबाजी विश्व कप में भारतीय टीम के गले की फांस बन सकती है। यह बात सही है कि धोनी ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उसी के घर में तीन वनडे मैच की सीरीज में तीनों ही पारियों में अर्धशतक लगा कर बेहतरीन बल्लेबाजी की, लेकिन इसके वाबजूद ज्यादातर मौकों पर यह देखा गया है कि धोनी क्रीज पर आने के बाद खुल कर बल्लेबाजी करने के लिए काफी वक्त लेते हैं,जिससे बाकी के बल्लेबाजों पर भी अतिरिक्त दबाव पड़ता है। इतना ही धोनी को अब लंबे-लंबे शॉट खेलने के लिए भी काफी संघर्ष करना पड़ा रहा है।

धोनी आम तौर वनडे क्रिकेट में नंबर 5 या नंबर 6 पर बल्लेबाजी करने आते हैं। ऐसी स्थित में बल्लेबाजी करने वाले बल्लेबाज को हर तरह की स्थित का सामना करने के लिए तैयार रहना पड़ता है। खास कर अगर टीम को कोई मुश्किल लक्ष्य हासिल करना हो या पावरप्ले हो उस वक्त नंबर 5 या नंबर 6 पर बल्लेबाजी करने वाले बल्लेबाज पर काफी अतिरिक्त जिम्मेदारी रहती है। विश्व कप में भी भारतीय टीम को कई ऐसे मुकाबले मिलेेंगे जहां ऐसी स्थित का सामना करना पड़ेगा। ऐसे में अगर धोनी की बल्लेबाजी का यही सिलसिला जारी रहा तो भारतीय टीम को नुकसान होना तय है, खास कर उन बड़े मुकाबलों में जहां स्थित करो या मरो की होगी।

धोनी का अगर पिछला रिकॉर्ड देखें तो यह विषय और भी ज्यादा गंभीर हो जाता है कि कहीं वो विश्व कप में भारतीय टीम की हार का कारण ना बन जाएं। पिछले दो साल में धोनी ने 37 पारियां खेली हैं जहां उनका बल्लेबाजी औसत 51.50 का रहा है। वहीं उनका स्ट्राइक रेट 76.86 का है जो कि आज की आधुनिक क्रिकेट को देखते हुए उस बल्लेबाज के लिए काफी खराब है जिसे मैच फिनिशर कहा जाता हो। पिछले दो वर्षों में सबसे ज्यादा स्ट्राइक-रेट वाले बल्लेबाजों की सूची में भारतीय दिग्गज आठवें स्थान पर है। कुल मिला कर विश्व कप में टीम मैनेजमेंट को धोनी प्रेम दिखाना भारी पड़ सकता है।

अभी तक कप्तान विराट कोहली, उप कप्तान रोहित शर्मा, कोच रवि शास्त्री और चीफ सेलेक्टर एमएसके प्रसाद सभी का यही कहना है कि धोनी विश्व कप की टीम का अहम हिस्सा होंगे। जो भी हो लेकिन टीम मैनेजमेंट को यह नहीं भूलना चाहिए कि विश्व कप का टूर्नामेंट एक ऐसा टूर्नामेंट होता है जो चाल साल में एक बार आता है। टीम के खिलाड़ियों के साथ-साथ हर खेल प्रेमी का भी यही सपना होता है कि उसका देश चैंपियन बनें। धोनी का विश्व कप की टीम में चुनाव हो इस चीज का विरोध नहीं किया जाना चाहिए। उनकी कप्तानी में भारतीय टीम ने हर बड़ा खिताब अपने नाम किया है। लिहाजा उन्हें विश्व कप खेलने का पूरा हक भी है, लेकिन टीम मैनेजमेंट को विश्व कप में प्लेइंग इलेवन का चुनाव सिर्फ और सिर्फ खिलाड़ियों के प्रदर्शन के आधार पर ही करना चाहिए। क्योंकि टीम के खिलाड़ियों का बेहतरीन प्रदर्शन ही जीत की रूप रेखा तय करता है ना कि उसका पिछला रिकॉर्ड और अनुभव।

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