अब समय बदल गया है। क्रिकेटर बनने के बाद यह भी सीखना पड़ता है कि अपने आप को दुनिया के सामने कैसे पेश करना है, जो पैसा कमा रहे हैं उसे कैसे संभालना है, ड्रग्स और भष्टाचार से कैसे बचना है और उसी के साथ-साथ मीडिया में जब आलोचना हो रही हो तो उससे प्रभावित हुए बिना, पूरा ध्यान अपनी क्रिकेट पर कैसे लगाना है?
कई क्रिकेटरों ने इसका रास्ता यह निकाला कि सीरिज/टूर्नामेंट के दौरान वे अखबार पढ़ते ही नहीं -इससे यह पता ही नहीं लगता कि उनके बारे में क्या लिखा जा रहा है? क्रिकेटर कई बार यह शिकायत करते हैं कि जो खुद नहीं खेले वे भी उनकी क्रिकेट में तकनीकी गलतियां निकालने लग जाते हैं। इसी तरह क्रिकेटरों को, पुराने क्रिकेटरों की आलोचना हजम नहीं होती, खास तौर पर उन क्रिकेटरों की आलोचनात्मक बातें जो कभी साथ खेले थे।
सौरव गांगुली जब कप्तान थे और खुद भी अखबार में कॉलम लिखते थे तो उन्होंने अपने कॉलम में ऐसी आलोचना का जवाब लिखना शुरू कर दिया था। इससे एक ‘युद्घ’ सा शुरू हो जाता था, माहौल बिगड़ता था और ध्यान क्रिकेट से हटता था इसलिए भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने प्रतिबंध लगाया कि कोई भी मौजूदा क्रिकेटर कॉलम लिखना तो दूर, ऐसी आलोचना पढ़ कर मीडिया में उसका जवाब भी नहीं देगा।
यह मुद्दा इंग्लिश क्रिकेट सीजन की पहली टेस्ट सीरिज की बदौलत फिर चर्चा में आया है। पाकिस्तान के विरुद्घ लार्ड्स के पहले टेस्ट में इंग्लैंड की हार के बाद, इंग्लैंड के भूतपूर्व कप्तान माइकल वॉन ने डेली टेलीग्राफ अखबार में अपने कॉलम में लिख दिया कि अब समय आ गया है कि तेज गेंदबाजी की जोड़ी तोड़े और जेम्स एंडरसन एवं स्टुअर्ट ब्रॉड में से किसी एक को टीम से निकाल दें। जेफरी बॉयकॉट ने अपने कॉलम में लिखा कि जो रूट को चाहिए कि अपने क्रिकेटरों के पिछवाड़े को किक करें। स्टुअर्ट ब्रॉड ने बॉयकाट को तो जवाब नहीं दिया पर वॉन को न सिर्फ फोन किया – उसी अखबार में वॉन की आलोचना का जवाब लिख दिया।
इसके बाद जब हेडिंग्ले टेस्ट में एंडरसन और ब्रॉड दोनों विकेट ले रहे थे और आखिर में इंग्लैंड ने टेस्ट जीता तो ब्रॉड ने हर रोज कहा – मैंने वॉन को जवाब दे दिया है।’ संयोग से अपने टेस्ट कैरियर की शुरूआत में एंडरसन और ब्रॉड तब माइकल वॉन की कप्तानी में भी खेले थे और इसीलिए ब्रॉड को ज्यादा गुस्सा आया। वॉन ने लिखा – ‘मैं यही जोश तो पैदा करना चाहता था ब्रॉड में! आलोचना का फायदा हुआ और दोनों ने हेडिंग्ले में विकेट लिए।’
जब पिछले साल, महेंद्र सिंह धोनी की उम्र की दलील देकर वी वी एस लक्ष्मण एवं अजीत अगरकर उन्हें पहले तो टी20 और फिर एकदिवसीय टीम से निकलने की बात कर रहे थे तो भारतीय टीम के हेड कोच रवि शास्त्री ने कैसा करारा जवाब दिया था – ‘जो ऐसा कह रहे हैं वे पहले अपने कैरियर पर तो नजर डालें।’ शास्त्री ने आगे कहा – ‘किसी के भी खेल के बारे में बोलने से पहले यह देख लेना चाहिए कि मैं खुद क्या किया?’
कई पुराने क्रिकेटर पड़े होशियार हैं जैसे कि सुनील गावस्कर। वे किसी से नहीं बिगाड़ते और सीधे-सीधे किसी की आलोचना नहीं करते। शायद इसकी वजह है भारतीय क्रिकेट बोर्ड के साथ उनका कंट्रेक्ट। यहां तक कि मैच फिक्सिंग मामले में भी गावस्कर ने अपना नजरिया तक नहीं बताया था। यही गावस्कर जब कप्तान थे तो एक बार ब्यान दिया – कपिल देव कभी भी टेस्ट में 50 नहीं बना पाएंगे। बड़ा तमाशा हुआ। कपिल ने जवाब में 50 बना दिए तो गावस्कर ने कहा कि यही जोश जरूरी था।