वन डे इंटरनेशनल क्रिकेट में विश्व कप सबसे बड़ा टूर्नामेंट है और हर टीम की तरह भारत की भी कोशिश है कि विश्व कप से पहले, सही टीम की हर कड़ी सुलझ चुकी हो, टीम और इसका हर खिलाड़ी टॉप फॉर्म में हो और सबसे बड़ी बात ये कि किसी भी विवाद के बिना खिलाड़ी विश्व कप में खेलने जाएं। 2019 के विश्व कप से पहले की क्रिकेट की बात करने से पहले देखें कि पिछले विश्व कप से पहले क्या नजारा था?

1975 विश्व कप: 1971 में तो वन डे इंटरनेशनल क्रिकेट की शुरूआत हुई और 1975 में इंग्लैंड में पहला विश्व कप भी हो गया। भारत ने पहली बार वन डे इंटरनेशनल खेली 1974 में और इंग्लैंड के विरूद्ध 2 मैच की सीरीज में 2-0 से हार का अनुभव लेकर एक साल बाद विश्व कप खेलने पहुंच गए। नतीजा – विश्व कप में 3 मैच और सभी में हार।

1979 विश्व कप: यह विश्व कप भी इंग्लैंड में था और भारत ने कोई ज्यादा वन डे इंटरनेशनल क्रिकेट नहीं खेली थी। 1978-79 में पाकिस्तान से 3 मैच की सीरीज में 2-1 से हारे थे। बिना किसी खास अभ्यास के खेलने गए और फिर से ‘अनाड़ी’ साबित हुए। नतीजा – विश्व कप में 3 मैच और सभी में हार।

1983 विश्व कप: पहली बार प्रेक्टिस को महत्व दिया और सबसे अच्छा ये हआ कि 1983 में विश्व कप से पहले वेस्टइंडीज चले गए। वहां वेस्टइंडीज से भले ही 3 मैच की सीरीज हारे पर बर्बिस में क्लाइव लोयड की अपराजित कही जाने वाली टीम को हराया और इसी जीत का आत्मविश्वास इंग्लैंड ले गए। वेस्टइंडीज में तीसरा मैच 7 अप्रैल को था और जून में विश्व कप खेले। नतीजा – विश्व कप जीते।

1987 विश्व कप: 1983 की जीत की बदौलत भारत ने वन डे इंटरनेशनल की सीरीज लगातार खेलनी शुरू कर दीं। तब भी अक्टूबर में शुरू विश्व कप की तैयारी में अप्रैल के बाद कोई वन डे मेच नहीं खेला। उस शारजाह कप में फाइनल में पाकिस्तान से हारे थे। नतीजा – विश्व कप में ज्यादा आत्म विश्वास का नुकसान और सेमीफाइनल हारे।

1992 विश्व कप: इसका आयोजन ऑस्ट्रेलिया -न्यूजीलैंड में था और उसी 1991-92 सीजन में भारत ने ऑस्ट्रेलिया में एक लंबी सीरीज खेली। बैंसन हेजस वर्ल्ड सीरीज ट्राईएंगुलर की बदौलत अच्छी तैयारी हुई पर लगातार खेलने और कई महीने से घर से दूर रहने का भारत को नुकसान हुआ। विश्व कप से निराश लौटे।

1996 विश्व कप: विश्व कप की एशिया में वापसी तथा फरवरी में शुरू विश्व कप की तैयारी में नवंबर 1995 में न्यूजीलैंड के विरूद्ध 5 वन डे की सीरीज 3-2 से अपनी पिचों पर जीतने का कोई फायदा नहीं हुआ और भारत हारा विश्व कप के सेमीफाइनल में।

1999 विश्व कप: इंग्लैंड में विश्व कप था और भारत ने पहला मैच 15 मई को खेला। 16 अप्रैल तक इसकी तैयारी चली थी और शारजाह में कोका कोला कप के मैच खेले थे पाकिस्तान के विरूद्ध। कहां शारजाह का 40 डिग्री सेल्सियस का मौसम और कहां इंग्लैंड की ठंड। इसीलिए कोई फायदा नहीं हुआ। नतीजा-विश्व कप सुपर 6 राउंड।

2003 विश्व कप: इस बार दक्षिण अफ्रीका मुख्य मेजबान था और भारत ने 2002-03 सीजन में चैंपियन ट्रॉफी के अतिरिक्त 7-7 मैचों की दो बड़ी वन डे सीरीज खेली – दोनों में क्रमशः वेस्टइंडीज और न्यूजीलैंड से हारे। बहरहाल विश्व कप से पहले लय में थे। नतीजा – फाइनल तक पहुंच गए थे।

2007 विश्व कप: वेस्टइंडीज में इस विश्व कप की तैयारी में 2006-07 सीजन में लगातार खेले – डीएलएफ कप, चैंपियंस टट्रॉफी, दक्षिण अफ्रीका में 5 तथा क्रमशः वेस्टइंडीज और श्रीलंका के विरूद्ध 4-4 मैच की सीरीज। आखिरी दोनों सीरीज जीते पर वेस्टइंडीज में खेलना रास नहीं आया। वेस्टइंडीज जाने से एक महीना पहले तक मैच खेले थे।

2011 विश्व कप: यही 2011 विश्व कप से पहले हुआ। 2010-11 सीजन में क्रमशः ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड और दक्षिण अफ्रीका के विरूद्ध 13 मैच की 3 सीरीज खेले। पहली दो जीते और दक्षिण अफ्रीका को उनकी पिचों पर 2 मैच में हराया। नतीजा – अच्छी फॉर्म और विश्व कप जीते।

2015 विश्व कप: हालांकि विश्व कप की तैयरी में ऑस्ट्रेलिया में ही, 1991-92 की तरह से, कार्लटन मिड वन डे ट्राई सीरीज खेले पर ऑस्ट्रेलिया में विश्व कप के मैच रास नहीं आए। कार्लटन सीरीज में इंग्लैंड के विरूद्ध आखिरी मैच 30 जनवरी को था और विश्व कप में पाकिस्तान के विरूद्ध पहला मैच 15 फरवरी को। इस अनुभव का फायदा मिला – लगातार जीतते हुए विश्व कप सेमीफाइनल में पहुंचे।

2019 विश्व कप: विश्व कप इंग्लैंड में और भारत ने वन डे सीरीज खेली ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में। फायदा ये कि जीत का आत्मविश्वास मिलेगा। तय कैलेंडर के हिसाब से विश्व कप के लिए इंग्लैंड जाने से पहले ऑस्ट्रेलिया के विरूद्ध 5 और जिंबाब्वे के विरूद्ध 3 वन डे खेलने हैं भारत में। इस तरह लगातार खेलने का फायदा तो मिलना चाहिए।

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