कैसी पारी खेल गए दादा BCCI में?

भले ही इस साल की बीसीसीआई की एजीएम 18 अक्टूबर को है पर संकेत सामने आ चुके हैं कि क्या होने वाला है? इतिहास दोहराते हुए, भारत में क्रिकेट को चलाने के दावेदारों ने इस एजीएम से पहले ही तय कर लिया कि किस-किस को कौन सी पोस्ट मिलेगी। लिस्ट में सबसे बड़ा बढ़ाव ये है कि सौरव गांगुली बीसीसीआई के मौजूदा अध्यक्ष से पिछले अध्यक्ष बनने वाले हैं। न सिर्फ बीसीसीआई में उनके लिए कोई जगह नहीं- उन्हें तो आईसीसी अध्यक्ष के पद के लिए भी बीसीसीआई का समर्थन नहीं मिलेगा। 

इतना बड़ा बदलाव तो जरूर इसकी कोई ख़ास वजह रही होंगी। सौरव गांगुली पहले से, जिनकी हिट लिस्ट में हैं, वे उनके अध्यक्ष के तौर पर तीन साल के दौर की कमियां गिना रहे हैं, पर ये क्यों भुला दिया जाता है कि वे बोर्ड में सर्वे-सर्वा नहीं थे। हर फैसला एक टीम के तौर पर लिया गया, उस नाते तो जय शाह भी फेल हुए पर वे तो न सिर्फ अपनी जगह काबिज हैं, उनकी हस्ती और भी बढ़ गई और नई टीम उनकी मर्जी से ही बनी। 

पता चला है कि दादा को आईपीएल अध्यक्ष की पोस्ट देने का ऑफर था- वे आईसीसी अध्यक्ष/बीसीसीआई अध्यक्ष की पोस्ट ही चाहते थे तो इसलिए इस ऑफर में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं थी। यदि अध्यक्ष को बदला जा सकता है, तो सचिव को क्यों नहीं? स्पष्ट है राजनीतिक समीकरण और भाई-भतीजावाद की स्कीम में जय शाह पास और सौरव गांगुली फेल। राजनीतिक मोर्चे पर पार्टी युद्ध शुरू हो चुका है पर वह एक अलग मसला है। गांगुली-शाह टीम ने बीसीसीआई का मोर्चा, लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों के बाद अक्टूबर 2019 में संभाला था। 

इन दोनों का पहला टर्म, घरेलू खिलाड़ियों के मुआवजे के ढांचे को बदलने, आईपीएल अधिकारों की बिक्री और नया रोडमैप, 2023 से महिला आईपीएल, पुराने क्रिकेटरों की पेंशन में बढ़ोतरी और कोविड में भी क्रिकेट की कोशिशों के लिए याद किया जाएगा। कमियां भी रहीं, घरेलू क्रिकेट का स्तर गिरा, राहुल जौहरी के टर्म से पहले बीसीसीआई से इस्तीफे पर नए सीईओ को लाने की जगह, आईपीएल से हेमांग अमीन को ले आए- इसकी इजाजत नहीं थी, सेलेक्शन कमेटी मजाक बनी, कोई स्पष्टीकरण नहीं, जिसे चाहे चुनते रहो, कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं ये बताने के लिए  किसे क्यों चुना या नहीं चुना?बीसीसीआई के संविधान से कूलिंग ऑफ की शर्त में संशोधन और अन्य कुछ बदलाव, सबसे बड़ी उपलब्धि हैं और इनका जिक्र 

बीसीसीआई के इतिहास में हमेशा होगा। सुप्रीम कोर्ट के इसी आदेश ने गांगुली और शाह के 2025 तक बीसीसीआई में बने रहने का रास्ता बनाया पर इसका फायदा सिर्फ जय शाह को मिल रहा है। अब ये तय है कि सुप्रीम कोर्ट या लोढ़ा कमेटी चाहे जो करते रहें, बीसीसीआई मैनेजमेंट नेताओं के हाथ में ही रहेगी और गांगुली/ पटेल/बिन्नी जैसे क्रिकेटर तो महज मोहरे हैं।  

ये सौरव गांगुली की अपनी जिद्द थी कि एनसीए का प्रोजेक्ट आगे बढ़े- इस नेशनल एकेडमी का काम 10 से भी ज्यादा साल से अटका हुआ था। उन्होंने हरी झंडी दिखाई- टेंडर एलएंडटी को गया और काम चालू है। बोर्ड का इतिहास इस बात का गवाह है कि जब भी किसी भी तरह के अधिकार बेचे/बांटे गए- उसमें कोई पारदर्शिता नहीं थी और सिर्फ घोषणा होती थी और वह भी अधूरी। रकम की गिनती कभी नहीं बताई। सौरव गांगुली के समय में, हर अधिकार- चाहे बड़े या छोटे ई-ऑक्शन से बेचे गए। अभी हाल ही में आईपीएल मीडिया अधिकार रिकॉर्ड कीमत पर बेचे गए, इनकी हर शर्त, हर कोई जानता है और 50 हजार करोड़ से भी ज्यादा रकम के अधिकार के बावजूद, एक भी आरोप किसी भी गड़बड़ का नहीं लगा।  टीम इंडिया के साथ काम करने के लिए राहुल द्रविड़ को लाना और या उन्हें इसके लिए राजी करना संभवतः सिर्फ सौरव गांगुली के ही बस में था। एमएस धोनी को 2021 के टी20 विश्व कप के लिए टीम इंडिया में मेंटोर बनने के लिए राजी किया- यह अलग बात है कि इससे कोई बेहतर नतीजा नहीं मिला। 

कोविड जैसी भयंकर महामारी में भी बीसीसीआई को एक्टिव रखा- सिर्फ आईपीएल का आयोजन नहीं किया, जहां तक संभव हुआ घरेलू क्रिकेट को भी आगे बढ़ाया। वह भारत के पूर्व कप्तान हैं। अभी भी, अपने आप में, एक बहुत बड़ा ब्रैंड हैं, एंडोर्समेंट, विज्ञापनों में फीचर, आईपीएल फ्रेंचाइजी का हिस्सा और कमेंटेटर के तौर पर वापसी के विकल्प उनके सामने हैं। नाता न टूटे शायद इसीलिए वह बीसीसीआई अध्यक्ष की कुर्सी के बावजूद विज्ञापन कर रहे थे। लोगों ने उंगलियां उठाईं पर अब उसकी कोई वजह नहीं बची।  

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