murali vijay
मुरली विजय के रिटायर होने के फैसले में उनकी निराशा सामने आई?

मुरली विजय (Murali Vijay) ने इंटरनेशनल क्रिकेट से रिटायर होने का फैसला लिया। ये खबर सुनकर, जो पहली बात जहन में आती है, वह ये कि वे खेल कहां रहे थे कि रिटायर होने की घोषणा की जरूरत थी? ऐसे भी कोई आसार नजर नहीं आ रहे थे कि अब उन्हें फिर से कोई इंटरनेशनल मैच खेलने बुलाया जा सकता था। बस एक ऑफिशियल घोषणा की जरूरत थी जो हो गई और खुद ही इसकी वजह भी बता दी, “क्रिकेट की दुनिया में एक प्रोफेशनल के तौर पर नए अवसरों की तलाश करने का अब मुझे मौका मिलेगा। मेरा मानना है कि यह एक क्रिकेटर के तौर पर मेरे सफर का अगला कदम है और मैं अपने जीवन के इस नए चेप्टर का इंतजार कर रहा हूं।”

सच तो ये है कि इस, सात साल के इंटरनेशनल करियर में 61 टेस्ट, 17 वनडे और 9 टी20 मैच खेलने वाले, क्रिकेटर ने खुद ही तो अपनी निराशा और मन में दबी कसक का जिक्र कर दिया था और इसमें सबसे बड़ी बात ये कि खेलने के पूरे मौके नहीं मिले। किसी हद तक ये सच भी है, क्योंकि ज्यादा पुरानी बात नहीं है कि वे टेस्ट टीम में एक ख़ास और भरोसे वाला नाम थे, तब भी उन पर कभी पूरा विश्वास नहीं दिखाया गया। आखिरी बार दिसंबर 2018 में पर्थ टेस्ट खेले थे भारत के लिए। इसके अलावा आईपीएल में 106 मैच खेले 2 शतक और 2 शतक सहित 2619 रन बनाए, जिनमें 13 अर्धशतक भी थे। आईपीएल करियर में चेन्नई सुपर किंग्स, दिल्ली डेयरडेविल्स और किंग्स इलेवन पंजाब के लिए खेले।

ऑफिशियल तौर पर रिटायर होते हुए उन टीमों के लिए आभार जाहिर किया जिनके साथ वे जुड़े हुए थे मसलन बीसीसीआई, तमिलनाडु क्रिकेट एसोसिएशन, चेन्नई सुपर किंग्स और चेमप्लास्ट सनमार पर अंदर से वे सबसे नाराज हैं। पिछले 15 साल में भारत में मौजूद सबसे बेहतर टेस्ट ओपनर की लिस्ट बनाएं तो वे उनमें से एक थे। 2013-2015 के बीच तो मुश्किल हालात में भी टीम के सबसे भरोसे के बल्लेबाज थे। कई जानकार तो रोहित शर्मा और गौतम गंभीर से भी बेहतर मानते हैं उन्हें और ऐसी ही बातें, विजय की निराशा हैं- जिन वीरेंद्र सहवाग के पार्टनर थे वे चमक गए और रोहित एवं गंभीर भी पर उन्हें कभी ख़ास पहचान नहीं मिली।

दिसंबर 2018 में ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध आख़िरी टेस्ट, 2015 के बाद से कोई वनडे या टी20 मैच नहीं और उनका आईपीएल करियर भी व्यावहारिक तौर पर सितंबर 2020 में ख़त्म, सभी में एक बार टीम से बाहर हुए तो वापसी का कोई मौका नहीं मिला। इसीलिएअब वे अपना जोर भारत से बाहर आजमाना चाहते हैं। अभी कुछ ही दिन पहले, एक पॉडकास्ट में, पुराने क्रिकेटर डब्ल्यूवी रमन से बात करते हुए कहा था कि बीसीसीआई की नजर में, एक क्रिकेटर को 30 साल की उम्र तक पहुंचने पर 80 साल के बराबर मान लिया जाता है यानि कि कोई मौका नहीं और सब रास्ते बंद। उन्हें भरोसा था कि वे अभी भी बेहतर प्रदर्शन की क्षमता रखते हैं पर मौका ही नहीं दिया गया।

मुरली विजय के इस गुस्से पर मिला-जुला रिएक्शन देखने को मिला। कुछ निराश क्रिकेटर की इस धारणा से सहमत तो कई को लगा कि विजय सिर्फ इसलिए बहाना बना रहे हैं, क्योंकि बीसीसीआई ने जो भी मौके दिए- उन का वे पूरा फायदा नहीं उठा पाए। 61 टेस्ट में 38.39 की औसत से 3982 रन जिसमें 12 शतक और 15 अर्धशतक उनके नाम हैं और ये कोई खराब रिकॉर्ड नहीं है। ये भी मानते हैं कि वे सहवाग के बिलकुल सही पार्टनर थे और उन्हीं की भरोसे वाली मौजूदगी की बदौलत सहवाग दूसरे सिरे पर खुल कर बैटिंग कर पाए। इसीलिए वे सहवाग का नाम भी लेते हैं, ‘जितने मौके सहवाग को दिए, मुझे नहीं।’

ऐसा क्यों हुआ? इसकी एक नहीं,कई वजह हैं। चुनौती देने वाली नई टैलेंट की मौजूदगी तो इसकी वजह है ही पर कुछ और बातें भी हैं जो उनके खिलाफ गईं। मसलन जब देश कोविड-19 के प्रकोप से जूझ रहा था तो वैक्सीन ने क्रिकेट की फिर से शुरुआत का रास्ता बनाया। विश्वास कीजिए- विजय ने वैक्सीन लेने से इंकार कर दिया। बायो बबल से अपनी नफरत साफ़-साफ़ बयान कर दी। उस माहौल में, अगर खिलाड़ी कोविड से बचाव के रास्तों में साथ न दे रहा हो तो उसकी मदद कौन करता? आईपीएल 2020 में वे चेन्नई सुपर किंग्स के लिए खेले थे और उसके बाद खुद कहा कि कोविड प्रोटोकॉल उन्हें रास नहीं आ रहे- इसलिए नहीं खेलेंगे। यही बात तमिलनाडु की टीम में हुई। इससे वे बिलकुल अलग से पड़ गए। तमिलनाडु क्रिकेट एसोसिएशन ने तो एक रिलीज में कहा भी था कि उन्हें तो ये भी नहीं मालूम कि विजय हैं कहां और इसीलिए सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी के लिए उनके नाम पर विचार नहीं किया। अगर वह फिर से स्टेट टीम में वापसी की इच्छा जाहिर भी करते हैं तो यह बड़ा मुश्किल होगा, ट्रेनिंग पर वापस जाना होगा, अपनी फिटनेस साबित करनी होगी, मैच खेलने से पहले अपनी फॉर्म साबित करनी होगी।

तो इस तरह से रास्ते तो विजय ने खुद बंद किए। उनके इसी व्यवहार की वजह से उनके क्रिकेट के ही नहीं, पुराने ग़ुस्से के किस्से भी चर्चा में आने लगे, हर जगह सब से अलग और झगड़े, इसीलिए ही तो ज्यादा पढ़ नहीं पाए। जिसने 12 तक की पढ़ाई में 8 स्कूल बदल लिए हों उसके बारे में आप क्या कहेंगे? कुछ जानकार इस निराशा में उन के पारिवारिक मसलों को भी जोड़ देते हैं, उन्हें किसी दूसरे क्रिकेटर का घर तोड़ने का जिम्मेदार माना जाता है।

इन सब विवाद के चलते उनकी क्रिकेट के बेहतर पहलू पीछे रह गए पर उन्हें रिकॉर्ड से हटाया नहीं जा सकता। यादगार पारियां, ब्रिस्बेन में 144, ट्रेंट ब्रिज में 145, लॉर्ड्स में 95, एडिलेड में 99 और किंग्समीड में 97 हैं। टेस्ट में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ चार शतक, इंग्लैंड के खिलाफ तीन शतक, श्रीलंका के खिलाफ दो शतक, बांग्लादेश के खिलाफ दो शतक और अफगानिस्तान के खिलाफ एक शतक लगाया।

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