अब तो चलो आईपीएल के 11 सीजन खेले जा चुके हैं और 12वां सीजन शुरू होने वाला है – सच ये है कि पहले सीजन से ही क्रिकेट में आईपीएल ने कई नई और ऐसी शुरूआत कीं जो आज पेशेवर क्रिकेट को शुरू करने के लिए जिम्मेदार इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया जैसे देश भी अब जब कोई नया टूर्नामेंट शुरू करते हैं तो प्रेरणा के लिए आईपीएल की तरफ देखते हैं, आईपीएल के आंकड़ों से अपने टूर्नामेंट की कामयाबी की तुलना करते हैं। अपने समय से बहुत आगे रही है आईपीएल।

2008 में आईपीएल को क्रिकेट में मनोरंजन का नाम देकर जब भारत में शुरू किया गया तो ये खुद अपने आप में एक नई शुरूआत थी। इंग्लैंड में ट्वंटी 20 क्रिकेट के टूर्नामेंट थे पर इनमें से किसी में भी क्रिकेट को एक बिकने वाले प्रोडक्ट के तौर पर पेश नहीं किया गया था। वर्ल्ड टी 20 में आईसीसी ने भी ऐसा कुछ नहीं किया था। आप खुद देखिए:

चीयरलीडर्स : ये तो अमेरिका में जोशीले खेलों का तमाशा था जिसे ललित मोदी भारत जैसे परंपराओं में बंधे देश में ले आए। कम कपड़ों में क्रिकेट मैच में लड़कियों का नाचना अनोखी बात थी। कैरी पैकर ने मनोरंजन के नाम पर परियों के बीच इंटरवल में डांस कराया था पर उस डांस से टीमों का कोई लेना-देना नहीं था।

भारत का टूर्नामेंट, भारत से बाहर: हालांकि न्यूट्रल ग्राउंड में क्रिकेट की मिसाल मौजूद थीं पर 2009 में तो कमाल ही हो गया। भारत की पूरी आईपीएल उठाकर दक्षिण अफ्रीका ले गए। क्रिकेट साउथ अफ्रीका ने भी अपने हर ग्राउंड और हर सुविधा के दरवाजे खोल दिए।

टाइम आउट: दक्षिण अफ्रीका गए तो सौदा महंगा हो गया। उसी की भरपाई के लिए उन्होंने हर पारी में 10 ओवर के बाद साढ़े सात मिनट का टाइम आउट शुरू दिया – ब्रॉडकास्टर को मौका मिल गया ढेरों विज्ञापन दिखाने का। टीमों ने भी इसका फायदा उठाया अपनी नई नीति बनाने थे। बाद में हर पारी में दो टाइम आउट कर दिये – कुल 5 मिनट के। इन्हें कब लेना है यह टीमों पर छोड़ दिया। इससे सनसनी का तड़का लग गया।

स्पांसर सबसे बड़ा: टूर्नामेंट या कमेंट्री के स्पांसर तो क्रिकेट में पहले भी थे लेकिन उन्हें जो पहुंच और चर्चा आईपीएल ने दिलाई उसका कोई जवाब नहीं है। ‘कार्बन कमाल कैच’ या ‘डीएलएफ मैक्सिमम’ जैसे जुमले इससे पहले क्रिकेट में कभी सुने नहीं गए थे। खेल का हर पहलू किसी न किसी स्पांसर के नाम के साथ जुड़ गया और सबसे खास बात ये थी कि बड़े कमेंटेटर बने क्रिकेटर इन स्पांसर का नाम बोल रहे थे।

कैमरे: कैरी पैकर खुद टेलीविजन टायकून थे पर मैच को कैमरों से उन्होंने भी ऐसा नहीं बांधा था जैसा आईपीएल में किया गया। मैदान में अलग-अलग जगह कैमरे और माइक्रोफोन लगा दिए ताकि कुछ भी न बचे।

कमेंटेटर से सीधे जोड़ दिए गए अंपायर। चलते खेल में कमेंटेटर बात करते हैं अंपायर से। यहां तक कि कमेंटेटरों ने कप्तान से उसके हर फैसले पर पूछना शुरू कर दिया। क्रिकेट में परंपरा है कि अंपायर खेल शुरू करते समय आवाज लगाएंगे ‘प्ले’ की। आईपीएल ने इसे भी बदल दिया – सब सुनते हैं जब अंपायर पूछते हैं बल्लेबाज से – ‘आर यू रैड्डी बैट्समैन!’ गेंदबाज से – ‘आर यू रैड्डी बॉलर!’ और फिर दर्शकों से भी – ‘…आर यू रैड्डी दिल्ली!’

खिलाड़ियों का पूल, नीलाम और टीम पर्स: अगर टीम बनाने के लिए 10 साल की किश्तों पर अलग अलग शहर की टीम के फ्रेंचाइज अधिकार बेचना एक विविधता था तो हर नीलाम में हर टीम का बराबर पर्स उन्हें एक लाइन में ले आया – पैसा बराबर और अब जरूरत के हिसाब से समझदारी दिखाकर खिलाड़ी खरीदो।

मिड सीजन ट्रांसफर: टीमों को सीजन के बीच में टीम की संरचना बदलने का मौका मिलता है – काम में न आ रहे खिलाड़ियों की ट्रांसफर की बदौलत।

क्रिकेट तब ऐसी थी?

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