डीआरएस मतलब डिसीजन रिव्यू सिस्टम, जिसमें दोनों टीम अंपायर के फैसले के रिव्यू की अपील कर सकती हैं। इसकी शुरूआत तो इसलिए की गई ताकि किसी भी वजह से अगर अंपायर के फैसले में गलती लगे तो बल्लेबाज (जो क्रीज पर मौजूद है) और गेंदबाजी कर रही टीम के कप्तान के पास फैसले के रिव्यू की अपील का विकल्प हो। ऐसा नहीं है कि डीआरएस से कोई फायदा नहीं हुआ। कई बार गलती से बचे। फिर भी जरूरत के हिसाब से इस सिस्टम को और बेहतर बनाने का वक्त आ गया है। हाल की कुछ घटनाओं ने इसे जरूरी कर दिया है।

वेस्टइंडीज और इंग्लैंड के बीच एंटीगा टेस्ट के पहले दिन इंग्लैंड की टीम 187 पर आउट हुई और इसमें अपना पहला टेस्ट खेल रहे सलामी बल्लेबाज जो डेनले खेल शुरू होते ही रिव्यू की बदौलत एलबीडब्लू से बचे। मौजूदा डीआरएस की शर्तों के हिसाब से ट्रेकिंग टेक्नोलॉजी से जब गेंद का पैड पर लगने के बाद आगे के सफर का स्कैच बनाया जाता है – तो आउट के लिए गेंद का कम से कम आधा हिस्सा स्टंप्स पर जरूर लग रहा हो। डेनले को लगभग एक मिली मीटर के फर्क ने बचा लिया।

दक्षिण अफ्रीकी तेज गेंदबाज डेल स्टेन अपने घर पर टेलीविजन पर ये मैच देख रहे थे और वे चुप नहीं रहे – ‘अगर गेंद स्टंप्स पर लग रही है तो इससे क्या फर्क पड़ता है कि कितने प्रतिशत गेंद स्टंप्स पर लगी?’ स्पष्ट है कि डीआरएस की यह शर्त, यह तय होने के बावजूद कि गेंद स्टंप्स पर लग रही थी, बल्लेबाज को फायदा पहुंचाने वाली है। इस तरह एंटीगा में ट्रेनिंग टेक्नोलॉजी के गेंद के स्टंप्स पर लगने के स्कैच के बावजूद डेनले आउट नहीं दिए गए।

जहां एक तरफ बल्लेबाज को बल्लेबाजी करते हुए, गेंद की लैंथ और लाइन तथा स्विंग को बेहतर ढंग से खेलने के लिए अपना स्टांस बदलने की छूट दे दी – वही यह तय होने के बावजूद कि गेंद स्टंप्स पर लगती, यह जरूरी नहीं कि गेंदबाज को विकेट मिलेगा।

न्यूजीलैंड में न्यूजीलैंड-भारत ऑकलैंड टी-20 अंतर्राष्ट्रीय में क्या हुआ? क्रुणाल पांड्या के 6वें ओवर की आखिरी गेंद डेरिल मिशेल के पैड पर लगी। अंपायर ने आउट दे दिया पर मिचेल ने नॉन स्ट्राइकर सिरे पर मौजूद कप्तान केन विलियमसन से सलाह कर रिव्यू की अपील कर दी। मिशेल को विश्वास था कि गेंद ने बैट का बाहरी किनारा छू लिया था। स्लो मोशन रिप्ले में साफ दिखाई दे रहा था कि बैट से आगे निकलते ही गेंद की सीम की दिशा बदल गई यानि कि गेंद लगी थी बैट पर। हॉट स्पॉट में भी पता लग रहा था कि गेंद बैट पर लगी पर रियल टाइम स्निको से तय नहीं हो पाया कि जो आवाज थी – क्या वह गेंद के बैट को छूने की ही थी?

स्टेडियम में हर कोई मान रहा था कि पैड पर लगने से पहले गेंद ने बैट का बाहरी किनारा छू लिया पर चूंकि डीआरएस की शर्त पूरी नहीं हो रही थी इसलिए टेलीविजन अंपायर ने मैदान के अंपायरों का साथ दिया और मिचेल को आउट दे दिया। इस गलत फैसले से बचने का सिर्फ एक ही तरीका था और वह था रोहित शर्मा अपील वापस लें – उन्होंने ऐसा नहीं किया।

खर्चा बचाने के लिए अधूरे डीआरएस के इंतजाम से भी कुछ हासिल नहीं हो रहा। इस सीजन की बांग्लादेश प्रीमियर लीग में डीआरएस के प्रयोग का इतिहास तो बना पर मदद के लिए स्निको, हॉट स्पॉट और अल्ट्राएज में से कुछ भी नहीं था। कोमिला विक्टोरियंस-सिलहट सिक्सर्स मैच में स्टीवन स्मिथ के विवाद से बच जाते अगर ये होते। इसीलिए लीग के बीच में इनका इंतजाम करना पड़ा।

आईसीसी की अधूरी कोशिश किसी काम नहीं आ रही और न सिर्फ सिस्टम में संशोधन जरूरी हो गया हैं – जहां भी इसका प्रयोग हो, पूरा हो।

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