भारत के नजरिए से असली काउंटडाउन की शुरूआत तो अब हुई है। विश्व कप में एक और टाइटल की तलाश में भारत की 15 खिलाड़ियों की टीम का नाम सामने आ गया। जो जो किनारे पर अटके हुए थे उन पर भी दबाव हटा टीम चयन का – टीम में चुन लिए गए तो विश्व कप में बेहतर खेलने का नया दबाव और जो नहीं चुने गए वे अब अपना पूरा ध्यान आईपीएल पर लगा सकेंगे। वैसे कुछ पता नहीं होता – पता नहीं किन हालात में किसे कब आवाज लग जाए?

चयनकर्ता पिछले लगभग दो साल से टीम की सही संरचना की तलाश में जुटे हुए थे क्योंकि उन्हें मालूम था कि आखिरी 15 चुनने वाले दिन हर नजर उन पर होगी। ये तय है कि कोई भी चयन हर किसी को संतुष्ट नहीं कर सकता पर विश्व कप के इतिहास में भारत की हर बार की टीम के चयन के बाद किसी खास खिलाड़ी पर जो जो बहस हुई उनमें से कोई भी ऋषभ पंत पर हो रही बहस का मुकाबला नहीं करती। कहीं ऐसा तो नहीं कि ढेरों मैच की क्रिकेट के होमवर्क और इस बार टीम चुनने से पहले की चयनकर्ताओं को दी गई साइंटिफिक प्रजेंटेशन के असर में चयनकर्ता ऐसी टीम चुन गए जो पेपर पर लिखी अच्छी लगती है, साइंटिफिक प्रजेंटेशन की कसौटी पर खरी उतरी है पर क्रिकेट समझ में पीछे रह गई! क्या हैं टीम के कमजोर और मजबूत पहलू?

मजबूत पहलू तो ये कि टीम चुनने से कई महीने पहले ही ये लगभग तय हो गया था कि किन किन 12-13 ने तो इंग्लैंड जाना ही है। बहस 2-3 खिलाड़ियों की थी और वही टीम चुनने के बाद है। हर विदेशी विशेषज्ञ ऋषभ पंत को न चुनना गलत बता रहा है – चयनकर्ताओं ने साइंटिफिक प्रजेंटेशन को देखा, जिसमें झलक इस बात की थी कि दबाव में दिनेश कार्तिक बेहतर रन बनाते हैं। साथ ही चयन समिति के चेयरमैन एमएसके प्रसाद ने भी संकेत दे दिया कि कार्तिक तो पंत से बेहतर विकेटकीपर हैं। अगर ऐसा है तो पंत को अब तक टेस्ट में क्यों खिला रहे थे?

नंबर 2 विकेटकीपर के लिए दिनेश कार्तिक की उम्र, ज्यादातर बड़े मैचों में नाजुक वक्त पर उनकी नाकामयाबी नजरअंदाज कर दी वहीं अंबाती रायुडू के मामले में उनकी हाल की साधारण फॉर्म को दिमाग से नहीं निकाल पाए। ये भी भूल गए कि फॉर्म अस्थाई होती है और उससे खिलाड़ी का आंकलन नहीं हो सकता।

युवा विजय शंकर का चयन हैरानी वाली बात नहीं, चयनकर्ताओं की स्कीम का हिस्सा हैं। चुनी टीम 1983 के विश्व कप की विचारधारा और सोच पर टिकी है। नंबर 4 पर विशेषज्ञ रायुडू नहीं, खेल में हर पहलू में काम आ सकने वाला विजय शंकर चाहिए। पंत नहीं, दिनेश कार्तिक चाहिए क्योंकि उन्हें जरूरत पड़ने पर कहीं भी फिट कर दें। केएल राहुल को गिना तो रिजर्व ओपनर पर सोच यही है कि कहीं भी फिट कर दो।

विशेषज्ञ क्रिकेटरों की कमी टीम का संतुलन बिगाड़ती है। 1983 की टीम में कपिल देव, मोहिंदर अमरनाथ, कीर्ति आजाद, मदन लाल, रोजर बिन्नी और रवि शास्त्री कहीं भी फिट किए जाने वाले क्रिकेटर थे – इस बार लोकेश राहुल, दिनेश कार्तिक, विजय शंकर, केदार जाधव, हार्दिक पांडया और रविंद्र जडेजा कहीं भी फिट किए जाने वाले क्रिकेटर हैं।

टीम के चयन से एक दिन पहले चयनकर्ताओं को बोर्ड की तरफ से एक साढ़े तीन घंटे की प्रजेंटेशन दी गई, जिसमें टीम के डाटा एनालिस्ट सीकेएम धनंजय ने हर खिलाड़ी के खेल का कंप्यूटर विश्लेषण किया। चयनकर्ताओं ने उसी विश्लेषण को आधार बना लिया। इस तरह से पेपर पर संतुलित और कंप्यूटर के विश्लेषण पर फिट होने वाली टीम का चयन हो गया। यह नहीं देखा कि लंबा निचला मध्यक्रम बल्लेबाजी की क्या हालत करेगा? दिनेश कार्तिक को कब तक घसीटेंगे?

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