सालों तक भारतीय क्रिकेट में यह भ्रम क्रिकेट बोर्ड ने पाले रखा कि भारत के क्रिकेटर, अन्य दूसरे देशों के क्रिकेटरों की तुलना में बहुत ‘अच्छे’ हैं – न तो ये सट्टेबाजी में शामिल हो सकते हैं और न ही ड्रग्स लेंगे। इस गलतफहमी का बैलून ऐसा फटा कि पता लगा कि भारत दुनिया भर में क्रिकेट में धांधलेबाजी और सट्टेबाजी का सबसे बड़ा सेंटर है और हर किस्से में ‘भारतीय मूल के एक सट्टेबाज’ का शामिल होना एक आम खबर बन गई।
ऐसा नहीं है भारत की अपनी क्रिकेट इससे बची। महिला क्रिकेट में एक सीनियर क्रिकेटर तक पहुंच गए सट्टेबाज। उन्हें तो मैचों में फिक्सिंग की दलदल में घसीटने की कोशिश हुई ही, यहां तक कहा कि वन डे इंटरनेशनल टीम की कप्तान को भी राजी कर लें। उधर, तमिलनाडु प्रीमियर लीग में एक टीम के मालिक तथा भारत के पुराने क्रिकेटर वीबी चंद्रशेखर की आत्महत्या के मामले की जांच करते करते पुलिस लीग में मैच फिक्सिंग तक पहुंच गई। नतीजा ये कि कर्नाटक प्रीमियर लीग और मुंबई प्रीमियर लीग को भी एंटी करप्शन यूनिट ने जांच के दायरे में ले लिया है, जो तामिलनाडू प्रीमियर लीग में मैच फिक्स करा सकते हैं, क्या इन लीग को छोड़ देंगे?
अभी भी बोर्ड की एंटी करप्शन यूनिट अपनी धारणाओं पर काम कर रही है जैसे कि कोई भी बड़ा खिलाड़ी फिक्सिंग के लालच में नहीं फंसेगा (… तो मोहम्मद अजहरूद्दीन, मनोज प्रभाकर, अजय जडेजा और एस श्रीसंथ जैसे मशहूर क्रिकेटरों को सजा क्यों मिली ?)। सिर्फ नए और नाकामयाब क्रिकेटरों पर शक की सुई को रखना ही तो वह भूल है जिसे छोड़ना होगा। फिक्सिंग का मायाजाल इतना फैल चुका है कि सिर्फ कोड ऑफ़ कंडक्ट बनाने या एंटी करप्शन यूनिट बनाने से काम नहीं चलने वाला।
सबसे पहली बात तो ये कि यह मानें कि भारतीय क्रिकेट में सट्टेबाजी है। आए दिन देश के अलग अलग सेंटर में क्रिकेट में सट्टा लगाने वालों का पकड़ा जाना इसका सबूत नहीं तो और क्या है? इसीलिए सरकारी तौर पर भी यह सोचा गया कि क्यूं न अन्य कुछ देशों की तरह भारत में भी क्रिकेट पर सट्टेाबजी को कानूनी मान्यता दे दें? उदाहरण के लिए इंग्लैंड में क्रिकेट की सट्टेबाजी की दुकानें खुली हैं। मैचों के दौरान आन लाइन सट्टेबाजी के कई पोर्टल हैं। भारत में ये काम छिप कर हो रहा है।
इस अभिशाप के दो हिस्से हैं। पहला: एक आम या शौकीन क्रिकेट प्रेमी, जो क्रिकेट पर सट्टा लगाता है। दूसरा: वे जो सट्टा लगाने के काम का सेंटर चलाते हैं और ज्यादा पैसा कमाने के लालच में ऐसा धंधा करने वाले अंतर्राष्ट्रीय बाजार से तो जुड़े हैं ही, क्रिकेटरों या मैचों से जुड़े अन्य दूसरे लोगों को लालच में फंसाकर मैचों को फिक्स कराने की कोशिश करते हैं। पूरा मैच न सही, मैच के छोटे छोटे हिस्सें में खेल वैसे ही होता है जैसे तय होता है।
इस तरह ये लड़ाई दो फ्रंट पर है। विश्वास कीजिए कि भारत में भी यह सोचा जा रहा है कि क्यूं न क्रिकेट पर सट्टेबाजी को कानूनी शक्ल दे दें? छिप छिप कर क्यों सट्टा लगाएं? इंग्लैंड की तरह दुकाने हों जहां काम में पारदर्शिता हो और क्रिकेट प्रेमी अपना शौक पूरा करें। लॉ कमीशन ऑफ़ इंडिया ने तो इसके फायदे गिनाकर सरकार को रिपोर्ट भी दे दी हैं। न सिर्फ इस धंधे पर ‘टैक्स’ से सरकारी खजाने में पैसा आएगा, ब्लैक मनी की लेन-देन रोकने में भी मदद मिलेगी। मौजूदा ढांचे में सिर्फ कैश चलता है। 2013 के आईपीएल फिक्सिंग स्कैंडल की जांच के केस में सुप्रीम कोर्ट ने लॉ कमीशन को इस बारे में अपनी रिपोर्ट तैयार करने के लिए कहा था।
लॉ कमीशन ने इस रिपोर्ट में सट्टेबाजी को कानूनी मान्यता देने के मामले को हरी झंडी दिखाई है। एक साल से भी ज्यादा हो गया है सरकार को ये रिपोर्ट मिले पर इस पर कार्रवाई ठंडे बस्ते में हैं क्योंकि भारतीय समाज में इसे ‘सही’ का दर्जा देना आसान नहीं। कई मसले हैं – उम्र की जांच कैसे होगी, सट्टेबाजी में एक व्यक्ति कितना पैसा लगा सकता है, क्या यह जानबूझकर एक नई दलदल फैलाने वाला होगा, क्या पैन या आधार इससे जोड़े जा सकते हैं?
दूसरा फ्रंट बोर्ड और पुलिस के हवाले है। अगर क्रिकेट खेलने वाले या क्रिकेट खिलाने वाले बिकते रहेंगे तो रोकना आसान नहीं।