तो आखिरकार आईपीएल 2019 में दिल्ली कैपिटल्स का मार्च विशाखापट्टनम में क्वालिफायर 2 में चेन्नई सुपर किंग्स से 6 विकेट की हार के साथ खत्म हो गया। निराशाजनक लगेगा ये नतीजा क्योंकि धोनी के क्रिकेटर उन पर भारी पड़े, आईपीएल टाइटल जीतने का सूखा अभी तक जारी है और कगिसो रबाडा जैसे कामयाब गेंदबाज की कमी महसूस हुई पर सच्चाई ये है कि इस सीजन को उनकी उपलब्धियों और आईपीएल में एक टॉप टीम के तौर पर वापसी के लिए याद रखा जाना चाहिए। टीम का नाम और जर्सी बदलने से लेकर टीम मैनेजमेंट ने जो फैसले लिए वे दिल्ली कैपिटल्स को बिल्कुल अलग टीम बनाने वाले रहे और इसीलिए टीम ने आईपीएल को इस विश्वास के साथ खत्म किया – हां! हम भी जीत सकते हैं।
वे कौन सी बातें हैं जिन्होंने दिल्ली कैपिटल्स के लिए यह सीजन खास बनाया:
1. युवा कप्तान में विश्वास: श्रेयस अय्यर ने न सिर्फ खुद रन बनाए (क्वालिफायर 2 तक इस सीजन में कप्तानों में उनके 463 से ज्यादा रन सिर्फ विराट कोहली के 464 रन), अन्य खिलाड़ियों के लिए भी प्रेरणा बने। पूरे सीजन में कप्तानी से जुड़ा कोई विवाद नहीं। क्वालिफायर 2 तक सिर्फ धोनी और श्रेयस ने ही इस सीजन में 10-10 मैच जीते थे, जब क्वालिफायर 2 हारे तो श्रेयस की उम्र 24 साल 108 दिन थी – इस सीजन के अगले सबसे छोटे कप्तान भुवनेश्वर कुमार से लगभग 4 साल कम।
2. युवा क्रिकेटरों पर भरोसा: टीम में कुल 24 क्रिकेटर थे और इनमें से 14 की उम्र 26 साल से कम तथा इनमें से 12 की उम्र 25 साल से कम, जब तक वे दिल्ली डेयरडेविल्स थे तो 11 सीजन में उन्होंने ऐसी पालिसी नहीं दिखाई। पृथ्वी शॉ से लेकर हर युवा खिलाड़ी ने टीम के लिए क्रिकेट खेली – पृथ्वी शॉ और ऋषभ पंत इसमें सबसे आगे थे।
1 अप्रैल को दिल्ली कैपिटल्स की जो टीम किंग्स इलेवन के विरूद्ध मोहाली में खेली उसकी औसत उम्र 25.71 साल थी – ये 14 अप्रैल तक इस सीजन में सबसे कम उम्र वाली टीम रही – तब हैदराबाद (25.47 साल) ने दिल्ली के ही विरूद्ध मैच में ये रिकॉर्ड तोड़ा।
3. बड़े-बड़े नाम वाले विदेशी क्रिकेटर ही टीम के लिए नहीं चमके: अगर रबाडा के 25 विकेट (12 मैच में) भूल जाएं तो दिल्ली कैपिटल्स के प्ले ऑफ खेलने की कामयाबी में सबसे बड़ा योगदान भारत के अपने क्रिकेटरों का था – शिखर धवन ने 521, ऋषभ पंत ने 488, श्रेयस अय्यर ने 463 और पृथ्वी शॉ ने 353 रन बनाए। विदेशी खिलाड़ियों में टीम के टॉप स्कोरर कोलिन इनग्राम थे और 12 मैच में सिर्फ 184 रन बनाए।
गेंदबाजी में भी सारा बोझ रबाडा एवं क्रिस मौरिस (13) ने नहीं उठाया – इशांत ने 13, अमित मिश्रा ने 11 और अक्षर पटेल ने 10 विकेट लिए।
4. बेहतरीन सपोर्ट स्टाफ: हर खिलाड़ी ने हैड कोच रिकी पोंटिंग और सलाहकार सौरव गांगुली की टिप्स की तारीफ की। दोनों को सालों का अनुभव है। साथ ही साथ सपोर्ट स्टाफ में मौहम्मद कैफ (सहायक कोच), जेम्स होप्स एवं सेमुअल बद्री (गेंदबाजी कोच) तथा प्रवीण आमरे (टैलेंट स्काउट) के योगदान को कैसे भूल जाएं?
इन सभी बातों ने टीम के खेल को बदला और नतीजा ये कि 2012 में प्ले ऑफ खेलने के बाद टीम पहली बार प्ले ऑफ में अब खेली। कहते हैं टॉप टीम को अच्छी क्रिकेट के साथ-साथ अच्छी किस्मत की मदद मिलना जरूरी होता है और इसकी कमी रही दिल्ली कैपिटल्स के खाते में।
ग्रुप राउंड में एक समय वे नंबर 1 थे पर अपनी पिच पर 7 में से 3 मैच हारना भारी पड़ा और इसी से गुप राउंड खत्म होने पर हालांकि अंक में चेन्नई और मुंबई के बराबर थे 18 अंक पर, लेकिन नैट रन रेट ने नंबर 3 पर पहुंचा दिया। इसी वजह से क्वालिफायर 1 नहीं, एलिमिनेटर खेलना पड़ा और टाइटल की राह में एक मैच बढ़ गया। एलिमिनेटर में दूसरी टीम वह सनराइजर्स थी, जिसने उनसे 3 मैच कम जीते थे।
आईपीएल में एलिमिनेटर जीतने वाली सिर्फ 2 टीम फाइनल खेली हैं (स्पष्ट है कि रिकॉर्ड दिल्ली के साथ नहीं था) – इनमें से भी सिर्फ एक ने टाइटल जीता। प्ले ऑफ सिस्टम में ये रिकॉर्ड सनराइजर्स ने बनाया। अगर दिल्ली कैपिटल्स ने क्वालिफायर 1 खेला होता तो उसे जीतकर 5 दिन बाद फाइनल खेलते। अब 3 दिन में दो मैच (एलिमिनेटर और क्वालिफायर 2) खेले और अगर फाइनल में पहुंच जाते तो 5 दिन में 3 मैच खेलते – सिर्फ शुरू के मैचों में लापरवाही ने अंक का हिसाब बिगाड़ा और इस गफलत ने टीम को नुकसान पहुंचाया।
बहरहाल सीजन में ‘वापसी’ दिल्ली कैपिटल्स ने की तथा 2012 के बाद प्ले ऑफ खेलना आगे के लिए प्रेरणा बनेगा।