क्रिकेट के खेल में एक लेग स्पिन गेंदबाज़ की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है. एक लेग स्पिनर के पास कई गेंदबाजी वेरिएशन्स होते हैं, जिसकी बदौलत वे विपक्षी बल्लेबाजों को अपने जाल में आसानी से फांसते हैं. उन विविधताओं में से एक है ‘स्लाइडर’, जो विश्व के किसी भी बल्लेबाज के लिए काल साबित होती आई है. आज हम इस गेंदबाजी के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे.
‘स्लाइडर’ गेंदबाजी क्या है?
यह एक ऐसी गेंद है, जो लेग स्पिनर द्वारा डाली जाती है. ये गेंद पिच पर विकेट के बीचों बीच पड़ती है तथा ये ज्यादा टर्न और बाउंस नहीं होती. बल्लेबाज गेंद के ज्यादा टर्न और उछाल की उम्मीद करता है, लेकिन गेंद के कम टर्न और लो होने के कारण वो गच्चा खा जाता है, जिसके बाद ज़्यादातर बल्लेबाज को अपना विकेट खोकर वापस पवेलियन का रुख करना पड़ता है. स्लाइडर को बैक स्पिनर भी कहा जाता है.
‘स्लाइडर’ गेंदबाजी करने की विधि
स्लाइडर गेंद डालना हर किसी के बस की बात नहीं है. इस प्रकार की गेंदबाज़ी करने के लिए गेंद को ग्रिप करने की तकनीक बेहद ज़रूरी है. इसकी सहायता से ही सटीक ढंग से स्लाइडर गेंद डाली जा सकती है. इस प्रकार की गेंद को डालने के लिए अपने हाथ की पहली तीनों उंगलियों से गेंद को पकड़ा जाता है. पहली दोनों उँगलियों के बीच की दूरी अपेक्षाकृत ज़्यादा होता है और दोनों उँगलियाँ गेंद की सिलाई पर होती हैं. इस दौरान तीसरी उंगली मुड़ी होती है. तीसरी उंगली की सहायता से ही गेंद को स्पिन कराया जाता है. गेंद फेंकते समय कलाई नीचे की और झुकी होती है, वहीँ गेंद को कलाई की सहायता से डाला जाता है. ये गेंद लेग स्पिन की तरह ही डाली जाती है. दोनों में फर्क सिर्फ इतना है कि लेग स्पिन साधारण तरीके से डाली जाती है, वहीँ स्लाइडर को रिस्ट स्पिन की सहायता से डाला जाता है.
स्लाइडर गेंदबाजी करते समय ध्यान रखने योग्य बातें
इस प्रकार की गेंदबाजी की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि गेंदबाज़ गेंद की तेज़ी को किस तरह से बदलता है. स्लाइडर को खेलना जितना मुश्किल होता है. इसको फेंकना उतना ही कठिन होता है. ऑस्ट्रेलियाई टीम के पूर्व दिग्गज लेग स्पिनर शेन वॉर्न स्लाइडर का बहुत खूबी से इस्तमाल किया करते थे.