डब्ल्यूपीएल (WPL) कई नई शुरुआत का टूर्नामेंट है पर खेल के दौरान, ग्राउंड पर, एक सनसनीखेज बदलाव और देखने को मिल रहा है। बहरहाल, ये समझ से बाहर है कि प्लेइंग कंडीशन में इस सनसनीखेज बदलाव पर बीसीसीआई ने टूर्नामेंट शुरु होने से पहले कुछ बताया क्यों नहीं?
पहले ही मैच में, मुंबई की कप्तान हरमनप्रीत (Harmanpreet Kaur) ने गुजरात की पारी के दौरान, 13वें ओवर की आखिरी गेंद पर वाइड कॉल को चुनौती दी और रिव्यू का इशारा किया तो एक बार को तो ये लगा था कि वे गलत हैं और वाइड के रिव्यू का तो विकल्प ही नहीं है। साइका इशाक की मोनिका पटेल (Monica Patel) को एक गेंद लेग साइड की तरफ थी और ग्राउंड अंपायर ने वाइड का इशारा कर दिया। इसी पर रिव्यू मांगा हरमन ने।
कमेंट्री बॉक्स में माइक पर हर्षा भोगले थे और उन्होंने भी कुछ क्षण बाद ही स्पष्ट किया कि डब्ल्यूपीएल में टीम डीआरएस में न सिर्फ वाइड का रिव्यू मांग सकती हैं, नो-बॉल के लिए भी रिव्यू होगा उनके पास। हां, रिव्यू की गिनती में इससे कोई बदलाव नहीं किया है- पहले भी दो नाकामयाब रिव्यू मिलते थे और अब भी दो ही नाकामयाब रिव्यू ले सकते हैं। तो इस तरह, ‘आउट’ या ‘नॉट आउट’ कॉल के साथ-साथ वाइड और नो-बॉल के लिए भी रिव्यू मांग सकते हैं।
भारत एक नई शुरुआत कर रहा है डब्ल्यूपीएल में डीआरएस में वाइड और नो बॉल के रिव्यू को शामिल करते हुए। शुरुआत डब्ल्यूपीएल से है और इसे आगामी आईपीएल में भी लागू किया जाएगा।
डब्ल्यूपीएल की प्लेइंग कंडीशंस के मुताबिक़, एक खिलाड़ी ऑन-फील्ड अंपायरों के आउट के किसी भी फैसले पर रिव्यू मांग सकता है (बल्लेबाज टाइम आउट के अतिरिक्त चाहे और किसी भी तरह से आउट हो) और अब इसी में, ग्राउंड अंपायरों के वाइड या नो बॉल पर किसी भी फैसले को जोड़ दिया है। जब भोगले की साथी कमेंटेटर मेल जोन्स, ने ये सुना तो वे हैरान रह गईं- ‘मैंने इससे पहले ऐसा कभी नहीं देखा है।’
हरमन ने जो रिव्यू मांगा, उसकी बात करें तो पता चला कि गेंद वास्तव में कीपर के पास जाने से पहले बल्लेबाज के ग्लव्स से टकराई थी यानि कि वाइड नहीं थी। तो अब डीआरएस सिर्फ आउट के लिए नहीं है- वाइड और नो बॉल के लिए भी है। अभी भी, लेग-बाई को रिव्यू में शामिल नहीं किया है।
उसके बाद रविवार के डबल हैडर के पहले मैच में, दिल्ली कैपिटल्स की तो बल्लेबाज जेमिमा रोड्रिग्स ने भी इसी कंडीशन का प्रयोग किया। उसने मेगन शुट्ट की एक फुल टॉस पर बाउंड्री शॉट लगाया पर जब देखा कि ऑन-फील्ड अंपायरों ने ऊंचाई के लिए, इस गेंद को नो-बॉल नहीं दिया है तो रिव्यू मांग लिया। रिप्ले और बॉल-ट्रैकिंग से पता चला था कि गेंद, बल्लेबाज के लिए इतनी ऊंची नहीं थी कि ऊंचाई के लिए नो बॉल दे दें।
उसके बाद डबल हेडर के दूसरे मैच में, जब यूपी को 3 गेंद में 6 रन की जरूरत थी तो एक डॉट बॉल निकल गई। ग्रेस हैरिस ने इस पर रिव्यू मांगा और ये गेंद वाइड के फैसले में बदल गई। इससे जीत का समीकरण और आसान हो गया।
आपको बता दें कि पिछले साल आईपीएल के दौरान भी वाइड और नो बाल को डीआरएस के दायरे में लाने का मसला चर्चा में आया था। तब आईसीसी एलीट पैनल में रह चुके अंपायर साइमन टॉफेल ने टी20 क्रिकेट में वाइड और ऊंचाई वाली नो-बॉल को रिव्यू में लाने का समर्थन नहीं किया था।
जब इस तरह के मसले की बात करें तो आईपीएल की दो मिसाल का जिक्र बहुत जरूरी है। 2019 में, चेन्नई सुपर किंग्स के कप्तान एमएस धोनी, राजस्थान रॉयल्स के विरुद्ध एक मैच के दौरान, बेन स्टोक्स की एक ऊंची फुल टॉस को नॉन बॉल न देने से, गुस्से में डगआउट से ग्राउंड में आ गए थे। असल में तब हुआ ये था कि पहले तो अंपायर उल्हास गांधे ने ऊंची होने के लिए नो-बॉल का इशारा कर दिया लेकिन जब उनके स्क्वायर-लेग सहयोगी ब्रूस ऑक्सेनफोर्ड ने उन्हें इस फैसले को ओवर रूल करने के लिए कहा तो इस पर, पहले तो ग्राउंड पर बल्लेबाजों रवींद्र जडेजा और मिचेल सैंटनर ने बहस की और बाद में धोनी भी अंपायरों के साथ इस बहस में शामिल हो गए।
पिछले सीजन में रॉयल्स के एक और मैच में आखिरी ओवर में भी ऐसी ही घटना हुई थी। रोवमैन पॉवेल ने ओबेड मैककॉय की एक फुल टॉस पर 6 का शॉट लगाया पर जब अंपायरों ने कमर-ऊंची नो-बॉल का इशारा नहीं किया तो पहले तो दोनों बल्लेबाजों ने इस पर बहस की और उसे देखकर दिल्ली कैपिटल्स के कप्तान ऋषभ पंत ने टीम के असिस्टेंट कोच प्रवीण आमरे को ऑन-फील्ड अंपायरों के साथ बात करने ग्राउंड में भेज दिया।
क्या अब इस तरह के विवाद देखने को नहीं मिलेंगे? अब रिव्यू का विकल्प है तो ऐसा होना तो नहीं चाहिए।