जिस अंदाज में भारत ने विश्व कप में अपने पहले दोनों मैच जीते उससे तो यही लगा था कि भारत की टाइटल जीतने की कोशिश सही राह पर है। किसी भी दिन दक्षिण अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया जैसी बड़ी टीमों को हराना कोई साधारण बात नहीं है। खास तौर पर ऑस्ट्रेलिया को क्योंकि न सिर्फ स्मिथ और वॉर्नर टीम में लौट आए हैं और गजब की फॉर्म में भी हैं।
भारत की इन दोनों जीत में बल्लेबाजी में खास योगदान ओपनर का रहा। दक्षिण अफ्रीका के विरूद्ध रोहित शर्मा तथा ऑस्ट्रेलिया के विरुद्ध शिखर धवन ने 100 रन बनाए। इस तरह विश्व कप से पहले की इस सोच को मजबूती मिल रही थी कि अगर भारत ने टाइटल जीतना है तो दोनों ओपनर को खास भूमिका निभानी होगी।
ऐसे में अचानक ही शिखर धवन के बांए हाथ के अंगूठे में हेयर लाइन फ्रेक्चर की खबर ने न सिर्फ धवन की विश्व कप में कोशिश, भारत की स्कीम को ही झटका दे दिया। बल्लेबाजी के जिन सवालों की विश्व कप से पहले कई महीने पहले चर्चा करते रहे थे, वे फिर से किताब की तरह खुल गए – यह समझ में आए बिना कि किसे कहां जोड़ें ? टीम इंडिया नई स्कीम के साथ खेलने के लिए तैयार है पर यह भी सच है कि शिखर धवन की कमी बड़ी महसूस होगी। वे कौन से 5 खास फैक्टर हैं, जो शिखर धवन की कमी महसूस कराएंगे?
1. जमी हुई ओपनिंग जोड़ी टूटी: क्रिकेट में परंपरा है कि ओपनर जोड़ी के तौर पर कामयाबी के लिए पहचाने जाते हैं। रोहित शर्मा-शिखर धवन जोड़ी की कमी रोहित शर्मा का कोई भी नया जोड़ीदार पूरी नहीं कर पाएगा। दोनों 45.89 औसत से 4681 रन वनडे इंटरनेशनल में जोड़ चुके हैं और 100 वाली साझेदारी की गिनती में दूसरे नंबर पर। अगर कुल मिलाकर देखें तो जोड़ी में दोनों एक दूसरे के लिए ऐसे हैं कि एक दूसरे के बिना अधूरे।
साथ में लैफ्ट-राइट होने के नाते गेंदबाजों का दम खम ही तोड़ देते थे। धवन के बाहर होने से अन्य टीमों के गेंदबाजों को बड़ी राहत मिली क्योंकि भारत की टीम में और कोई खब्बू है ही नहीं। न सिर्फ धवन गए – हो सकता है इससे रोहित शर्मा की लय पर भी असर आए।
2. टीम का मनोविज्ञान बिगड़ गया: चोटिल होकर टीम से बाहर हुए शिखर धवन, पर टीम इंडिया की बल्लेबाजी की लय ही बिगड़ गई। भरोसा था तभी तो किसी को रिजर्व ओपनर के तौर पर ले ही नहीं गए थे। बड़ी मुश्किल से लोकेश को नंबर 4 पर फिट किया था और उन्हें ओपनर बनाने से नंबर 4 का वह सवाल सामने आ गया जिससे बच रहे थे। अकेले शिखर धवन की वजह से बल्लेबाजी की कमजोरी सामने नजर आने लगी।
3. टीम मैनेजमेंट की सोच ने धवन का कद और बड़ा किया: होना तो यह चाहिए था कि धवन के न खेलने के बावजूद टीम को उनकी कमी महसूस न होती क्योंकि अभी भी भारत के टॉप 14 क्रिकेटर विश्व कप में मुकाबले के लिए इंग्लैंड में थे। हुआ ये कि एक ओपनर को चोट लगने पर जिन तीन नाम पर विचार हुआ वे मिडिल ऑर्डर के बल्लेबाज हैं – अंबाती रायुडू, ऋषभ पंत और श्रेयस अय्यर।
जिन लोकेश राहुल को ओपनर बनाया उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के विरूद्ध मैच तक 16 वन डे में सिर्फ 7 में ओपनर के तौर पर खेले थे।
4. बड़े मैच का टेंपरामेंट: शिखर धवन के अंदर बड़े मैच में अच्छा स्कोर बनाने का जो टेंपरामेंट है उसकी कमी सबसे ज्यादा महसूस होगी। विश्व कप में 10 मैच में 53.70 औसत से 3 शतक के साथ 537 रन, एशिया कप में 9 मैच में 2 शतक के साथ 59.33 औसत से 534 रन और चैंपियंस ट्रॉफी में 10 मैच में 3 शतक के साथ 77.88 औसत से 701 रन। ये कमी कैसे पूरी होगी?
5. टीम में मौजूदगी का अहसास: एक सही टीम मैन की तरह खेले और शिखर ने कप्तानी या और किसी तरह के प्रभुत्व की कोई आस नहीं रखी। कप्तानी विराट कोहली हो या और कोई – वे टीम के लिए खेले। ऐसे खिलाड़ी की कमी तो महसूस हाती ही है।