इस साल डब्ल्यूटीसी (वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप) का फाइनल 7 जून से लंदन के द ओवल में ऑस्ट्रेलिया और भारत के बीच खेलने से, इस चैंपियनशिप का 2021-23 राउंड पूरा हो गया। नया राउंड जल्दी ही शुरू होगा और उसमें डब्ल्यूटीसी के स्वरूप में कुछ बदलाव की उम्मीद करना गलत नहीं होगा। कौन से बदलाव ऐसे हैं जिन पर आईसीसी को ध्यान देना चाहिए :
अजीब पेचीदा स्वरुप : जो क्रिकेट ज्यादा नहीं जानता, उसे इस डब्ल्यूटीसी का स्वरुप समझाने की कोशिश करें तो पता चलेगा कि ये कितना अजीब है। टेस्ट क्रिकेट की ऐसी चैंपियनशिप जो दो साल चलती है और तब भी उसमें सभी टेस्ट देश हिस्सा नहीं लेते। 9 टीम खेलती हैं और उसमें भी टीमें एक राउंड में बराबर गिनती में टेस्ट मैच नहीं खेलती। टीमों में से कोई भी, एक टीम के विरुद्ध बराबर टेस्ट नहीं खेलती है। यहां तक कि एक सीरीज में खेले सभी टेस्ट का नतीजा पॉइंट्स की गिनती में नहीं आता। इससे उलझा स्वरूप और क्या होगा? स्वरूप में बदलाव की सख्त जरूरत है।
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डब्ल्यूटीसी सिर्फ पॉइंट्स इकट्ठे करने की क्रिकेट बन गई है : जैसे ही डब्ल्यूटीसी का राउंड शुरू होता है- हर टीम का ध्यान सिर्फ पॉइंट्स इकट्ठे करने पर हो जाता है और इस चक्कर में क्रिकेट का स्तर गिर रहा है। हर टीम ये देखना शुरू कर देती है कि क्वालीफाई करने के लिए क्या करना है, उस चक्कर में अपनी पिचों के साथ छेड़छाड़ होती है ताकि ज्यादा से ज्यादा पॉइंट्स बटोर लिए जाएं। विदेश में जीत को ज्यादा भाव मिलना चाहिए- अपनी पिच पर हासिल जीत की तुलना में।
फाइनल सिर्फ एक टेस्ट का क्यों : डब्ल्यूटीसी चली दो साल और सिर्फ एक टेस्ट ने फैसला कर दिया चैंपियन टीम का। क्या ये सही है? फाइनल भी वैसा तो हो जैसा चैंपियनशिप के राउंड में खेले। तब तो सीरीज खेले और फाइनल सिर्फ एक टेस्ट का। ये तो क्रिकेट की लोकप्रियता है कि तब भी विजेता को डब्ल्यूटीसी का विजेता मान लेते हैं अन्यथा ये सही नहीं। फाइनल में सीरीज खेलने की जरूरत है। दो साल की मेहनत पर एक खराब टेस्ट पानी न डाल दे। एक बार के बजाय बेस्ट-ऑफ-थ्री खेलें।
फाइनल इंग्लैंड में ही क्यों : अब तो वर्ल्ड कप जैसे बड़े आयोजन इंग्लैंड से हटाए जा चुके हैं तो डब्ल्यूटीसी फाइनल को इंग्लैंड में ही क्यों खेलें? इंग्लैंड कौन सा इसके फाइनल को ज्यादा भाव दे रहा है और वे जबरदस्ती अपने क्रिकेट कैलेंडर में इसके फाइनल को फिट करते हैं। तय हुआ था फाइनल लॉर्ड्स में खेलेंगे पर अब तक के दोनों में से किसी फाइनल को लॉर्ड्स में नहीं खेले। इस साल के फाइनल को लीजि, जिस ओवल में आम तौर पर अगस्त-सितम्बर में टेस्ट खेलते हैं, वहीं जून में फाइनल करा दिया। क्या आप विश्वास करेंगे कि इससे पहले जून में, ओवल में कोई टेस्ट नहीं खेला था। फाइनल दोनों टीम में से, पॉइंट्स पर टॉप रही टीम को मिले।
हर सीरीज कम से कम 3 टेस्ट की हो : इंग्लैंड-ऑस्ट्रेलिया एशेज टेस्ट सीरीज में 5 टेस्ट, भारत-ऑस्ट्रेलिया सीरीज में 4 टेस्ट तो ये कैसे बराबर हो सकती हैं, भारत-बांग्लादेश 2 टेस्ट की सीरीज के। अलग-अलग टीम, अलग-अलग समय, अलग-अलग पिच पर मैच खेलती हैं तो ये कैसे कह दें कि वास्तव में टेस्ट क्रिकेट की दो टॉप टीम फाइनल खेल रही हैं? क्या यह हैरानी की बात नहीं कि जिस इंग्लैंड ने अपने आख़िरी 11 में से 10 टेस्ट जीते- वे 2023 के फाइनल में नहीं। इस डब्ल्यूटीसी का स्वरूप आसान और टीम के सही खेल के हिसाब वाला हो।
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