babasaheb nibalkar
निंबालकर ने 443* के साथ रणजी में तो सर्वाधिक स्कोर बना लिया था, लेकिन वर्ल्ड रिकॉर्ड नहीं बना पाए

पृथ्वी शॉ (Prithvi Shaw) ने असम के विरुद्ध रणजी ट्रॉफी (Ranji Trophy) मैच में 379 रन बनाए और इस के साथ भारत (India) के लिए फर्स्ट क्लास क्रिकेट में दूसरे सबसे बड़े स्कोरर बन गए। उनसे बड़ा स्कोर 443* रन है, जो दिसंबर 1948 में पूना क्लब में काठियावाड़ के विरुद्ध महाराष्ट्र के लिए भाऊसाहेब बाबासाहेब निंबालकर ने बनाए थे। 443* के स्कोर का जिक्र आते ही एकदम डॉन ब्रैडमैन का रिकॉर्ड 452* याद आ आ जाता है, 443* बना दिए तो ब्रैडमैन के स्कोर का रिकॉर्ड तोड़ने की कोशिश क्यों नहीं की? ये सच भी है और इसीलिए जब भी निंबालकर के 443* का जिक्र होता तो, जो रिकॉर्ड बनाए उनका कम और जो रिकॉर्ड नहीं बनाया, उसका ज्यादा जिक्र होता है। ये बड़ा अजीब किस्सा है।

उस समय फर्स्ट क्लास क्रिकेट में एक बल्लेबाज का सबसे बड़ा स्कोर ब्रैडमैन के 452* थे यानि कि अगर निंबालकर 10 रन और बना लेते तो ये रिकॉर्ड उनके नाम आ जाता। किस्मत साथ नहीं थी और इसके लिए जिम्मेदार थे काठियावाड़ के नाराज कप्तान प्रद्युम्नसिंह जी। निंबालकर सिर्फ किसी भी भारतीय के सबसे बड़े स्कोर का रिकॉर्ड बना कर ही रह गए। रणजी ट्रॉफी में उस दौर में बड़े-बड़े स्कोर आम थे, क्योंकि लॉ ये था कि मैच ड्रॉ रहा तो पहली पारी में बड़ा स्कोर बनाने वाली टीम विजेता। इस तरह मुकाबला पहली पारी में बड़े स्कोर का ज्यादा रह गया था। महाराष्ट्र ने 826-4 का स्कोर बना लिया था।

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उस 4 दिन के मैच में काठियावाड़ पहले दिन 238 रन पर आउट हुए। जवाब में महाराष्ट्र का स्कोर दिन का खेल खत्म होने तक 132-1 था। 29 साल के दाएं हाथ के बल्लेबाज निंबालकर ने 81-1 पर केवी भंडारकर के साथ पार्टनरशिप शुरू की थी। ये जोड़ी ऐसी जमी कि दूसरे दिन के खेल के खत्म होने से कुछ समय पहले ही अलग हुए- दूसरे विकेट के लिए पांच घंटे में 455 रन जोड़ लिए थे। भंडारकर 205 रन पर आउट लेकिन निंबालकर ने एसडी देवधर के साथ रन बनाना जारी रखा और दिन के आखिरी ओवर में अपने 300 रन पूरे किए।

तीसरे दिन महाराष्ट्र ने 587-2 से आगे खेलना शुरू किया। निंबालकर और देवधर ने तीसरे विकेट के लिए 242 रन जोड़े। देवधर 100 नहीं बना पाए, निंबालकर बहरहाल जमे रहे। 400 पार किए और अब नजर वर्ल्ड रिकॉर्ड पर थी।

चाय तक काठियावाड़ के खिलाड़ी लगातार फील्डिंग करते-करते बुरी तरह थक चुके थे। पहली पारी में स्कोर बढ़ाने का भी कोई महत्व नहीं रह गया था- बस सिर्फ ये देखना था कि निंबालकर नया वर्ल्ड रिकॉर्ड बना पाते हैं या नहीं? यहीं पर, राजकोट के महामहिम ठाकुर साहब, जो अपने राज घराने वाले रुतबे की बदौलत काठियावाड़ के कप्तान थे, मैच की हालत देख कर,अचानक ही गुस्से में आ गए। महाराष्ट्र के कप्तान को अल्टीमेटम दे दिया- पारी समाप्त घोषित करें अन्यथा उनकी टीम मैच से वॉक आउट कर जाएगी।

दोनों कप्तान जिद्द पर अड़े रहे। आखिर में महाराष्ट्र के कप्तान राजा गोखले ने वायदा किया कि अगर काठियावाड़ दो ओवर और फील्डिंग करे तो वे उसके बाद पारी समाप्त घोषित कर देंगे। इसके पीछे इरादा यही था कि इन दो ओवर में निंबालकर कोशिश करेंगे डॉन का रिकॉर्ड तोड़ने की। बड़ा समझाया गया, पर ठाकुर साहब नहीं माने और उनकी टीम अपने बैग पैक कर स्टेशन रवाना हो गई।

मैच वहीं रुक गया और निंबालकर 443* पर ही रह गए। निंबालकर को हमेशा इस बात का दुख रहा कि इतना बड़ा वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने का मौका उनके हाथ से निकल गया। ये आज तक एक रहस्य है कि वास्तव में काठियावाड़ टीम ने ऐसा किया क्यों? अगर लगातार फील्डिंग की थकान इसके लिए जिम्मेदार थी, तो ये बात भी कि काठियावाड़ को ये लगा कि उन का नाम गलत वजह से रिकॉर्ड बुक में आ जाएगा। निंबालकर रिकॉर्ड हासिल करने के लिए बेताब थे, क्योंकि इससे सर डॉन का रिकॉर्ड टूट जाता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

ये भी सच है कि निंबालकर को चाय के समय ही इस वर्ल्ड रिकॉर्ड के बारे में पता चला। अगर उन्हें ज़रा सा भी संकेत मिल जाता कि काठियावाड़ का चाय के बाद आगे खेलने का इरादा नहीं, तो वे रिकॉर्ड तोड़ने की कोशिश में कुछ तेजी से रन बनाते। वे तो अपने कप्तान की बात मान कर खेले कि विकेट पर टिके रहो और अपने रिकॉर्ड को नहीं, टीम को महत्व दो।

निंबालकर ने 8 घंटे 14 मिनट बल्लेबाजी की, 46 चौके और एक छक्का लगाया था। न सिर्फ ब्रैडमैन का रिकॉर्ड खतरे में था, महाराष्ट्र टीम, रणजी ट्रॉफी में सबसे बड़े स्कोर 912 के भी करीब थी, इसे होलकर ने चार साल पहले बनाया था। रिकॉर्ड नहीं टूटा, तब भी सर डॉन ब्रैडमैन ने निंबालकर को उनके बड़े स्कोर की बधाई दी।

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