आज सफेद गेंद की क्रिकेट में जिस पायदान पर क्रिस गेल, रोहित शर्मा, एलक्स हेल्स, विराट कोहली या एरोन फिंच का नाम लिया जाता है – ऑस्ट्रेलिया के ग्लेन मैक्सवेल का नहीं। वह भी तब जबकि योग्यता और स्ट्रोक प्ले में वे इनमें से किसी से कम नहीं। विशाखापट्टनम के पहले टी-20 में मैक्सवेल के विकेट ने ही भारत को मैच में वापसी का मौका दिया था। बैंगलोर के दूसरे टी-20 में मैक्सवेल ने कोहली और धोनी की तेज बल्लेबाजी के बावजूद मैच भारत से छीन लिया। मैक्सवेल की 55 गेंद में 113* की पारी में 7 चैक्के और 9 छक्के थे तथा भारत अक्टूबर 2015 के बाद पहली बार एक टीम से लगातार दो टी 20 हारा। कोई भी गेंदबाज मैक्सवेल का स्ट्रोक प्ले रोक नहीं पाया।

क्यों इस तरह की हिटिंग करने वाला बल्लेबाज, आज की सफेद गेंद की क्रिकेट के युग में भी, उस तारीफ को हासिल नहीं कर पाया जो उसे मिलनी चाहिए थी? विश्वास कीजिए विश्व क्रिकेट में चर्चा तो दूर की बात है– ऑस्ट्रेलिया के चयनकर्ताओं ने भी मैक्सवेल पर कभी पूरा भरोसा नहीं दिखाया। उन्हें लगातार खिलाया तक नहीं। टीम पर संकट के बावजूद उन्हें कप्तान बनाने की बात नहीं की। ऐसा क्यों?

बैंगलोर के शतक के बाद मैक्सवेल ने जो कहा उससे अपने आप पता लग जाता है कि उनकी हिटिंग की योग्यता को किस तरह बेकार किया जा रहा है – ‘वनडे में नंबर 6 या 7 पर खेलते हुए ज्यादा कुछ कर दिखाने का मौका नहीं मिलता। अगर टॉप ऑर्डर में बल्लेबाजी का मौका मिले तो बात कुछ और होगी।’

मैक्सवेल का रिकॉर्ड भी इस सवाल का जवाब देगा। 90 वन डे और 59 टी 20 खेले हैं अगस्त 2012 से सफेद गेंद वाली अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट खेलना शुरू करने के बावजूद। पहला वन डे 25 अगस्त 2012 को खेला और तब से ऑस्ट्रेलिया ने 125 वन डे खेले लेकिन मैक्सवेल इनमें से 90 में टीम में थे। हिटिंग की गजब की योग्यता के बावजूद (रन 2327) – वह भी तब जबकि उनके वन डे में आने के बाद से ऑस्ट्रेलिया के लिए सिर्फ जार्ज बैली (2723), स्टीवन स्मिथ (3059), डेविड वॉर्नर (3367) और एरोन फिंच (3444) ने ही उनसे ज्यादा रन बनाए। इनमें से किसी ने मैक्सवेल के स्ट्राइक रेट की बराबरी नहीं की। सच तो ये है कि वन डे इंटरनेशनल के इतिहास में 2000 रन बनाने वालों में मैक्सवेल के 121.71 के स्ट्राइक रेट की बराबरी कोई नहीं करता – जोस बटलर (119.04), अफरीदी (117.06), थिसारा परेरा (113.58), जेसन रॉय (105.51), जॉनी बेयरस्टो (105.03), वीरेंद्र सहवाग (104.47), डेविड मिलर (101.76) और एबी डिविलियर्स (101.10) उनके बाद हैं।

ऑस्ट्रेलिया के चयनकर्ता बात करते हैं प्रदर्शन में स्थिरता की कमी की, मैक्सवेल के 90 वन डे में सिर्फ एक शतक बनाने की पर इस बात को नजरअंदाज कर जाते हैं कि वन डे में 90 मैच की 81 में से 32 में नंबर 5, 29 में नंबर 6 और 10 में नंबर 7 पर बल्लेबाजी की – इन तीनों नंबर पर उसका स्ट्राइक रेट क्रमशः 122.52, 111.92 और 125.92 है यानि कि पहला लक्ष्य था बची खुची गेंद में टीम का स्कोरिंग रेट बढ़ाना, न कि अपने 100 की चिंता करना। इतने नीचे नंबर पर कई पारियां खेलने के बावजूद वे सिर्फ 9 पारी में ‘आउट नहीं’ रहे – ध्यान अपने विकेट को बचाने पर था ही नहीं। इसीलिए विश्व कप की स्कीम में भी ऑस्ट्रेलिया के चयनकर्ता उन्हें ज्यादा भाव नहीं दे रहे।

बैंगलोर के टी-20 के बाद कोच जस्टिन लैंगर ने कहा – ‘मैं मैक्सवेल को और ज्यादा 100 रन बनाते देखना चाहता हूं’ – यह नहीं बताया कि कैसे? टी 20 में उनके नाम 3 शतक हैं। मैक्सवेल ने सफेद गेंद वाली क्रिकेट का विशेषज्ञ बनने के चक्कर में प्रथम श्रेणी क्रिकेट को नजरअंदाज किया इसीलिए एशेज टीम में जगह के लिए उनके कम योग्यता वाले दावेदार हैं – वे नहीं! चयनकर्ताओं का विश्वास मैक्सवेल को चाहिए। वे लंबी पारी खेलना चाहते हैं। इसी कशमकश का असर क्रिकेट करियर पर है।

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